
डिग्गी। ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी डिग्गी पुरी में जलझूलनी एकादशी का पर्व आस्था, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर परंपरानुसार श्री जी महाराज की भव्य डोल यात्रा नगर के मुख्य मार्गों से निकाली गई, जिसमें जिले सहित आसपास के गांवों और कस्बों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। इस अवसर पर नगर के प्रत्येक कोने में धार्मिक उल्लास का वातावरण दिखाई दिया। मंदिरों की घंटियों, शंख-घड़ियाल की ध्वनि और बैंड-बाजों की गूंज से पूरा कस्बा भक्तिमय माहौल में सराबोर हो गया। डोल यात्रा को देखने के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। दिनभर कस्बे में मेले जैसा माहौल रहा। मुख्य बाजार की गलियों से लेकर सरवन सागर तालाब और विजय सागर तक श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शनों के लिए आतुर नजर आए।

इस दिन कस्बे में दो दर्जन से अधिक मंदिरों से डोल यात्राएं निकाली गईं। सभी मंदिरों के विमान सायं 4:30 बजे तक श्री जी महाराज के मुख्य मंदिर प्रांगण में पहुंच गए, जहां से समवेत रूप से यात्रा का शुभारंभ हुआ। डोल यात्रा के नगर भ्रमण के दौरान मुख्य बाजार सहित विभिन्न मार्गों पर श्रद्धालुओं एवं व्यापारियों ने फूलों की वर्षा कर डोल विमान का स्वागत किया। बच्चे और बुजुर्ग अपने घरों और दुकानों की छतों से डोल यात्रा का नजारा करते दिखे।

वातावरण में चारों ओर “जय श्री जी महाराज” और “कल्याण धणी की जय” के जयकारे गूंजते रहे।डोल यात्रा का पहला पड़ाव सरवन सागर तालाब रहा, जहां श्री जी महाराज के सरवन सागर तालाब के जल से छिड़काव किया। इस अवसर पर पुजारियों ने विधि-विधान से आरती उतारी। श्रद्धालुओं का मानना है कि जलझूलनी एकादशी पर ठाकुरजी के स्नान के पश्चात तालाब का जल पवित्र हो जाता है।जहा से सभी विमान वापस कल्याण मंदिर होते हुए चौपड़ चौराहे से धौली दरवाजे होते हुए विजय सागर तालाब पहुंचें। यहां पर एक-एक करके सभी डोल विमानों को तालाब में नौका विहार करवाया गया। ठाकुर जी के इस नौका विहार को देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु तालाब किनारे एकत्र हुए। बैंड-बाजों की धुन, ढोल-नगाड़ों की थाप और जयकारों के बीच जब ठाकुर जी का विमान नौका में सवार होकर तालाब के बीच पहुंचा तो दृश्य अद्भुत और अलौकिक हो उठा। इस अवसर पर श्री जी महाराज का सालभर में एक बार किया जाने वाला विशेष श्रृंगार भी किया गया। ठाकुरजी को आकर्षक परिधान पहनाए गए। कानों में कुण्डल, गले में मोतियों की माला, गुलाब व मोगरे के फूलों की मालाएं, ललाट पर तिलक और सिर पर सोने का छत्र धारण कराया गया।

विमान को चारों ओर से विद्युत लाइटों से सजाया गया, जिससे डोल यात्रा का दृश्य और भी भव्य नजर आ रहा था। श्रद्धालुओं ने ठाकुरजी को 51 किलो का विशेष भोग अर्पित किया। इसमें राजगिरी की खिचड़ी, खीर, सहगार नमकीन सहित विभिन्न व्यंजन सम्मिलित थे। भोग के उपरांत ठाकुरजी नगर भ्रमण के लिए प्रस्थान किए। भक्तों का मानना है कि इस दिन भगवान को अर्पित किया गया भोग अत्यंत फलदायी होता है और इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। पुजारी श्यामसुंदर शर्मा ने बताया कि जलझूलनी एकादशी के दिन गर्भगृह से ठाकुरजी को डोल विमान में विराजमान कर नगर भ्रमण कराया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान के स्नान करने से तालाब का जल पवित्र हो जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पवित्र जल का सेवन करने और स्नान करने से चर्म रोग, कुष्ठ रोग, सफेद दाग सहित कई गंभीर बीमारियां समाप्त हो जाती हैं। यही कारण है कि इस पर्व पर आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं और तालाब के पवित्र जल का आचमन करते हैं।नौका विहार के बाद डोल विमान बैंड-बाजों की धुन और जयकारों के साथ गढ़ परिसर पहुंचे। हर कोई अपने आराध्य के दर्शन करने और उनकी एक झलक पाने को उत्सुक था। गढ़ परिसर में पहुंचने के बाद सभी विमान अपने-अपने मंदिरों के लिए रवाना हुए।

डिग्गी धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां के तालाब, मंदिर और धार्मिक परंपराएं वर्षों से आस्था का केंद्र रहे हैं। जलझूलनी एकादशी का पर्व डिग्गी की पहचान बन चुका है। हर वर्ष इस दिन हजारों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर न केवल ठाकुर जी के दर्शन करते हैं, बल्कि नगर भ्रमण, स्नान और नौका विहार के दिव्य दृश्यों के साक्षी भी बनते हैं।डोल यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन नगर में आपसी भाईचारा, सहयोग और सामूहिकता की भावना देखने को मिलती है। लोग अपने-अपने स्तर पर श्रद्धालुओं के लिए जलपान, भंडारे और विश्राम की व्यवस्था करते हैं। पूरा नगर सेवा और भक्ति में लीन हो जाता है।जलझूलनी एकादशी के पावन अवसर पर डिग्गी में धार्मिक आस्था और संस्कृति का संगम देखने को मिला। इस अवसर पर पर्यटन विभाग की ओर से विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें राजस्थान की लोकसंस्कृति की झलक ने श्रद्धालुओं और दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

पर्यटन स्वागत केंद्र सवाई माधोपुर की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना के साथ हुई। इसके बाद मंच पर कच्ची घोड़ी नृत्य, चरी नृत्य, कालबेलिया नृत्य, मटकी भवाई, अलगोजा वादन, घूमर नृत्य और डिग्गी पुरी का राजा नृत्य सहित कई आकर्षक प्रस्तुतियां दी गईं। कार्यक्रम में कलाकारों ने राजस्थान की लोक कला और परंपराओं को जीवंत किया। कालबेलिया नृत्य की लयकारी, घूमर की झूमती अदाएं और मटकी भवाई की रोमांचक प्रस्तुति को दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से सराहा। स्थानीय लोगों और बाहर से आए श्रद्धालुओं ने इन प्रस्तुतियों का भरपूर आनंद लिया। पर्यटन विभाग का यह प्रयास जहां धार्मिक आस्था के पर्व को और विशेष बना गया, वहीं राजस्थान की लोकसंस्कृति को भी मंच पर जीवंत कर दिया।
